रचना शीर्षक : 1. मेले का बाँसुरीवाला ( श्रेणी ; लघुकथा )
प्रकाशनार्थ : हँस कथा कार्य शाला
c\oअक्षर प्रकाशन प्रा.लि ,
2\36 अंसारी रोड, दरियागंज ,
नई दिल्ली - 110002
ईमेल: editorhans@gmail.com
प्रदीप यादव ,
जी 4 कंचन अपार्टमेंट
133 अनूप नगर ;
एम.आई.जी. चौराहा
AB रोड ,ईंदौर
Pin 452010 ईमेल: pradeep4133@yahoo.com
मेले का बांसुरीवाला
______________________________
by - ~ प्रदीप यादव ~
.......कितना प्यारा वादा है इन मतवाली आँखों का .... फिल्मी
धुन बड़ी ही सुंदर ढंग से बांसुरी पर बज रही थी सड़क पर ...
एक बांसुरी वाला मधुर धुन बजाता हुआ बांसुरियां बेच रहा था।
प्यास लगी, तो बजाना रोक वह नजदीकी मकान के भाईसाहब
से इशारों में पानी देने की गुजारिश करने लगा। साहब ने तल्खी
मना किया और अपने मोबाईल पर बात करने में व्यस्त हो गए,
तभी भीतर से नाजुक हाथों ने बांसुरी वाले को पानी का गिलास
पकड़ा दिया। बांसुरी वाले ने पानी पीकर अंग्रेजी में 'थेंक्यु', कहा
आगे बढ़ गया, भीतर से एक जोड़ी आँख उसे ओझल होते देखती
रहीं, पर शायद उन भाईसाहब को नागवार गुजरा उन्होंने बच्चे
को हिकारत भरी नज़र से देखा और फोन पर बतियाने लगे, इस
वाकये से बच्चा भी सहम कर घर के अन्दर हो लिया।
कुछ दिन बाद बांसुरी वाला फिर लौटा पर शायद इस बार भाई-
साहब नही थे । बच्चा दौड़कर भीतर से पानी का गिलास भर
लाया। 'बांसुरी वाले भईया ' ! आवाज दे उसने उसे पानी पीने का
आग्रह किया। बांसुरीवाले ने इधर-उधर देखा फिर पानी पीते हुए
एक बांसुरी उसकी और बढा दी, बच्चे ने हिचकते हुए लेने से ना
कहा ....पर तब तक बाँसुरीवाला आगे बढ चुका था। बच्चा बांसुरी
ले मुस्कुराता हुआ घर के भीतर चला जाता है।
दुसरे दिन बांसुरी वाला बड़ी ही मधुर तान बजाता हुआ बच्चे के
घर के पास से गुजरा पर वहां उसकी पहले दिन वाली बांसुरी के
के टुकड़े घर के गेट के बाहर पड़े देख आसपास नज़र दौड़ाई तो
उपरी मंजिल पर खड़े बच्चे का रूंआसा चेहरा देख जैसे उसे कुछ
बोध हुआ। परन्तु उस दिन के बाद से बांसुरी वाला रोज़ आता पर
बिना बांसुरी बजाऐ ही सामने से गुजर जाता था। भाईसाहब भी
इस दौरान उसे कई बार घूर कर देखा करते।
कुछ और दिनों बाद बच्चे का परिवार स्थानीय मेले, घूमने आया।
एक बडे झूले के किनारे बच्चे खुश दिखाई दे रहे थे। तभी भाई-
साहब बच्चों को झूले का टिकिट दिलाने लाइन में लग गए। बच्चे
के साथ आई महिला ने उसे बांसुरी वाले से बाँसुरी दिला दी बस
अब नया दृश्य बडा मनोहारी था। बांसुरी वाला जो भी धुन बजाता
बच्चे को हुबहू उसकी जुगलबंदी करते देख परिवार के लोग और
मेला घूम रहे अन्य लोगों की आँखों में प्रशंसा का भाव साफ पढ़ा
जा सकता था।
महिला बांसुरी वाले से बोली, " ये अच्छी बांसुरी बजा लेता है, ना
बांसुरी वाले भइया .... ?
बांसुरी वाले प्रति-उत्तर दिया ..जी, मेडम जी, बहुत प्यारी बजाता
है, पर भाईसाहब के डर से घर के आगे वाले चौराहे पर मंदिर में,
मैंने ही उसे बजाना सिखाई थी ।
इसके पापा ही इसे शौक से दिला दिया करते थे .....। यह कहते ही
उस की आँखे डबडबा गइ।
दीदी, तुम अब उस आदमी के लिए आंसू बहाने बंद करो ..... और
ये लो, झूले के टिकिट .....भाईसाहब की आवाज गूंजी ! .. महिला
की चेतना जैसे यथार्थ में लौटी, फिर संयत होते हुए उसने टिकिट
लिए और प्रशंसा भरी नजरों से बच्चे को देखा, फिर सर पर हाथ
फेर कर अपने पास भींच लिया।
.....कहने को साथ अपने दुनिया चलती है, बस तेरी याद बाकी है,
परोक्ष में फिल्मी गीत बांसुरी वाला बजा रहा था , बच्चा ख़ुशी से
चहकते झूले का आनंद ले रहा था। ...बांसुरी वाले की प्यास ने
बच्चे की दुनिया को नया अध्याय जो दे दिया था ।
--------------------------------------------------
~ प्रदीप यादव ~ (स्व-रचित, 06 नवंबर 2012 )